कर्मफल के नियम भाग -2
(वर्तमान जन्म)
(मुख्य आधार -- योगदर्शन के पाद 2, सूत्र 12,13, सत्यार्थप्रकाश, आर्योद्देश्यरत्नमाला आदि वैदिक शास्त्र)
पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर इस जन्म में हमें ईश्वर की ओर से, कर्मफल के रूप में 3 वस्तुएं मिलती हैं। जिनका नाम है -- *जाति, आयु और भोग।* ये 3 वस्तुएं हमें पिछले जन्म के कर्मों के आधार पर मिली हैं।
*इन 3 फलों में से पहला फल है, जाति।* जाति शब्द का अभिप्राय है, शरीर। मनुष्य का शरीर, कुत्ते का, गधे का, हाथी का, भेड़ बकरी का, गाय भैंस का, शेर भेड़िए का, मछली या मगरमच्छ का शरीर, आदि आदि। जो भी शरीर मिला है, यह हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है।
*दूसरा फल है, आयु।* अर्थात जन्म से लेकर मृत्यु के बीच का समय। अगर किसी मनुष्य का शरीर, जन्म से लेकर 80 वर्ष तक जिया, 80 वर्ष में उसकी मृत्यु हुई, तो यह 80 वर्ष का समय, उसकी आयु कहलाएगी। यह भी उसके पिछले जन्म के कर्मों का फल है। *तीसरा फल है भोग*. भोग का तात्पर्य है, जन्म होते ही माता-पिता के घर में जो संपत्ति थी, जमीन मकान मोटर गाड़ी खाना पीना सोना चांदी नौकर चाकर आदि जो भी संपत्तियां थी, उन सब संपत्तियों का नाम भोग है। यह भी उस बालक को उत्पन्न होते ही प्राप्त हो गई। यह भोग भी उसका पूर्व जन्म के कर्मों का फल है।
इस प्रकार से जाति, आयु और भोग, ये तीनों फल आत्मा के पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। आत्मा के पूर्व जन्मों के जो कर्म हैं, उनका एक बहुत बड़ा भंडार है।
समझने के लिए कल्पना कर लीजिए, आपके कर्म भंडार में 1,00,000 कर्म हैं। इन 1,00,000 कर्मों को *संचित कर्म* के नाम से शास्त्रों में कहा गया है। उन 1,00,000 कर्मों में से 20,000 कर्म, जो आपने तुरंत पिछले जन्म में किए थे, उन 20,000 कर्मों का फल आपको जाति, आयु और भोग के रूप में प्राप्त हुआ। इन 20,000 कर्मों का नाम शास्त्रीय भाषा में *प्रारब्ध कर्म* है। इन्हीं 20,000 कर्मों से ये तीन फल मिले हैं, जाति, आयु और भोग।
अब जन्म से ही जो संपत्ति बालक को प्राप्त हो गई, वह अपने बचपन के 5 वर्ष की उम्र तक खाता पीता खेलता कूदता और घर की संपत्तियों का लाभ लेता है। इस प्रकार से यह अपने पूर्व जन्म के प्रारब्ध कर्मों का फल भोग रहा है।
(1,00,000 में से 20,000 कर्मों का फल तो अब जाति आयु और भोग के रूप में उसे मिल रहा है। बाकी बचे 80,000 कर्म, वे "संचित कर्म" के नाम से उसके कर्मों के खाते में चुपचाप पड़े रहेंगे। उनका फल इस चालू जीवन में बीच बीच में अर्थात् (8/14/26/32/44/62 वर्ष की आयु में नहीं मिलेगा। यह सामान्य नियम है। अपवाद स्वरूप, जब व्यक्ति विवाह करके संतानोत्पत्ति करेगा, तब उसे पूर्व संचित उन 80,000 कर्मों में से कुछ कर्मों (1 या 2 हजार कर्मों) का फल ईश्वर दे सकता है। ऐसा शास्त्रों को पढ़ने समझने से पता चलता है। पूरी कर्म फल व्यवस्था को जानना समझना मनुष्यों के लिए कठिन ही नहीं, असंभव है। इसलिए ऋषियों ने भी कुछ व्यवस्था बता दी, और फिर कहा कि हम इसे पूरी तरह नहीं समझ सकते। केवल ईश्वर ही इस व्यवस्था को ठीक ठीक जानता है। और वही अपनी व्यवस्था के आधार पर सब आत्माओं को उनके कर्मों का फल ठीक समय आने पर देता है।)
अब लगभग 4/ 5 वर्ष की उम्र हो जाने पर, बच्चा स्कूल कॉलेज गुरुकुल आदि में पढ़ने के लिए जाता है। यहां से उसके नए कर्म (इस जन्म के कर्म) शुरू होते हैं। अब जो बच्चा मेहनत करके अच्छी पढ़ाई कर जाएगा, अच्छी योग्यता बना लेगा, डॉक्टर इंजीनियर वकील वैज्ञानिक विद्वान दार्शनिक आदि जो भी योग्यता प्राप्त करेगा, उस योग्यता से एक तो उसे विद्या का सुख मिलेगा, बुद्धि बढ़ने का सुख मिलेगा। यह उसका इस वर्तमान जीवन के नए कर्मों का फल है, जो उसे इसी जन्म में मिल रहा है।
फिर अपनी योग्यता बनाकर वह समाज को सहयोग देगा। डॉक्टर इंजीनियर वकील वैज्ञानिक आदि बनकर समाज राष्ट्र के कार्य करेगा। उन कार्यों को करने से उसे अब धन मिलेगा। अब जो यह धन मिलेगा, यह पूर्व जन्म के किसी कर्म का फल नहीं है, यह इसी जन्म के इस बचपन से किए गए इस पुरुषार्थ रूपी कर्म का फल है।
जो व्यक्ति पुरुषार्थ करेगा उसे इस जन्म में आयु और भोग ये दो फल मिलेंगे। उसकी आयु भी बढ़ेगी और भोग भी बढ़ेंगे।
जो व्यक्ति इस जन्म में पढ़ाई-लिखाई आदि पुरुषार्थ नहीं करेगा, सामान्य कार्य ही करेगा, तो उसका आयु और भोग भी विशेष नहीं बढ़ेगा, सामान्य ही रहेगा। जो पूर्व जन्म के कर्मों से मिला, बस उतना ही रहेगा।
प्रश्न -- तो वे कौन से कर्म हैं, जिन कर्मो से इसी जन्म में फल मिलता है, और क्या फल मिलता है?
उत्तर -- इस जन्म में जो कर्मों का फल मिलता है, वह है आयु और भोग। अर्थात जो आयु और भोग, पूर्व जन्म के कर्म से मिला था। उसके अतिरिक्त नए कर्मों से हम इस जन्म में अपनी आयु और भोग को बढ़ा भी सकते हैं, और घटा भी सकते हैं ।
आयु और भोग को बढ़ाने वाले जो कर्म हैं, वे इस प्रकार से हैं।
अपनी 24 घंटे की दिनचर्या बनाना। उदाहरण के लिए रात्रि को जल्दी सोना सुबह जल्दी उठना शौच दातुन मंजन आदि करके व्यायाम करना अच्छे ढंग से स्नान करना ईश्वर का ध्यान करना दैनिक अग्निहोत्र हवन यज्ञ करना वैदिक शास्त्रों का अध्ययन करना अच्छे आर्य विद्वानों का सत्संग करना शाकाहारी भोजन खाना ईमानदारी बुद्धिमत्ता और मेहनत से नौकरी व्यापार आदि समाज राष्ट्र के कार्य करना अपने बच्चों को भी इसी प्रकार की अच्छी बातें सिखाना इत्यादि कर्मों से व्यक्ति को इसी जन्म में आयु और भोग बढ़ जाएगा। यह है इसी जन्म के कर्मों का इसी जन्म में फल । अर्थात पूर्व जन्म से उसे 80 वर्ष की आयु मिली थी। ये सारे अच्छे काम करके उसकी आयु 10 / 20 वर्ष और बढ़ जाएगी। और इन्हीं अच्छे कर्मों के करने से इस जन्म में उसे नई आय, धन संपत्ति के रूप में प्राप्त होगी। इस प्रकार से उसका भोग भी बढ़ेगा। यह इसी जन्म के कर्म का, इसी जन्म में फल है।
आयु और भोग को घटाने वाले जो कर्म हैं, वे इस प्रकार से हैं।
अब ऊपर बताई सारी बात को उल्टा कर दें, तो व्यक्ति अपनी मूर्खता और बुरे कर्मों से इसी जन्म में अपने आयु और भोग को घटा भी सकता है। अर्थात रात को देर तक जागना सुबह देर तक सोना व्यायाम नहीं करना अंडे मांस खाना शराब पीना झूठ बोलना छल कपट चोरी व्यभिचार आदि बुरे काम करना इत्यादि। इस प्रकार के बुरे कर्मों से उसकी आयु 10 / 20 वर्ष कम हो जाएगी और जो उसे धन प्राप्त हुआ था, उसमें से बहुत सा धन भी नष्ट हो जाएगा। यह इसी जन्म के बुरे कर्मों से इसी जन्म में फल मिला, ऐसा समझना चाहिए।
इसलिए वेदों के आधार पर ऋषियोंं ने जो हमें यह कर्म फल व्यवस्था समझाई है, इसको आप अच्छी प्रकार से समझ लें। और यदि आप अपने वर्तमान जीवन को सुखमय बनाना चाहते हों, और आने वाले अगले जन्म को भी उत्तम बनाना चाहते हों, तो ऊपर बताए शुभ कर्मों का आचरण करें। बुरे कर्मों से बचें।
पूरे जीवन भर जो आप ऊपर बताए कर्म करेंगे, इनमें से जिन कर्मों का फल, इसी जन्म में पूरा या कुछ मात्रा में मिल गया, वह तो इसी जन्म में आप भोग लेंगे।
और जिन कर्मों का फल पूरा नहीं मिला, अथवा बिल्कुल नहीं मिला, उन कर्मों का फल फिर अगले जन्म में आपको मिलेगा।
तो इस जीवन के उन बिना फल भोगे हुए कर्मों से, आपको अगले जन्म में फिर वही तीन फल मिलेंगे; जाति, आयु और भोग। आप कर्म करने में स्वतंत्र हैं। ऊपर बताए कर्मों में से जैसा कर्म करना अच्छा लगे, वैसा करें। ईश्वर आपको सद्बुद्धि प्रदान करें, कि आप अच्छे कर्म ही करें तथा बुरे कर्मों से बचें। आप सबका शुभचिंतक।
*(शेष चर्चा, अगले भाग में।)*
*लेखक -- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, निदेशक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।*
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