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कर्मफल सिद्धांत - 5

कर्मफल के नियम भाग - 5

कर्म के विषय में अगली जानकारी-- 
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*कर्मों के प्रकार।*

मूल रूप से कर्म दो प्रकार के होते हैं, और विस्तार से चार प्रकार के। 
मूल दो प्रकार ये हैं -- निष्काम कर्म और सकाम कर्म।
1- *निष्काम कर्म उन्हें कहते हैं , जो शुभ कर्म मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किए जाते हैं।* जैसे वेद आदि उत्तम शास्त्र पढ़ना पढ़ाना, ईश्वर का ध्यान करना, सत्य बोलना, सेवा करना परोपकार करना, दान देना इत्यादि ।

2- सकाम कर्म - *और जो शुभ अशुभ कर्म सांसारिक सुख (धन सम्मान प्रसिद्धि आदि प्राप्त करने) के उद्देश्य से किए जाते हैं, वे सकाम कर्म कहलाते हैं।*

 ये सकाम कर्म तीन प्रकार के होते हैं।
(1) शुभ (2) अशुभ और (3) मिश्रित।

1- शुभ कर्म - जिन कर्मों के करने से अपना भी सुख बढ़े, और दूसरों का भी। और वेदों में उनके करने का विधान किया हो, वे शुभ कर्म कहलाते हैं।
जैसे यज्ञ करना, वेदप्रचार करना, ईश्वर की उपासना करना, किसी रोगी की सेवा करना, किसी समाज सेवा के कार्य में दान देना, सत्य बोलना, मीठा बोलना, अच्छा सुझाव देना, शाकाहारी भोजन खाना आदि।

2- अशुभ कर्म - जिन कर्मों के करने से अपना भी दुख बढ़े, और दूसरों का भी। और वेदों में उनके करने का निषेध किया हो, वे अशुभ कर्म कहलाते हैं। जैसे चोरी करना, लूटमार करना, हत्या करना,कठोर बोलना, बिना प्रसंग के बोलना, निंदा चुगली करना, या गालियाँ देना, अंडे मांस खाना, शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना आदि।

3- मिश्रित कर्म - जिन कर्मों के करने से अपना और दूसरों का कुछ सुख बढ़े और कुछ दुख बढ़े, और वेदों में उनके करने का विधान भी किया हो, वे मिश्रित कर्म कहलाते हैं। जैसे खेती करना, व्यापार करना, किसी को दुखी होकर भोजन खिलाना, या दुखी मन से माता पिता की सेवा करना आदि।
     खेती व्यापार और दुखी होकर भोजन खिलाना इत्यादि कर्मों में कुछ पाप और कुछ पुण्य दोनों मिले-जुले रहते हैं। इससे कुछ सुख भी मिलता है, तथा थोड़ा दुख भी मिलता है। इसलिए इनको मिश्रित कर्म कहा जाता है।

इस प्रकार से ये सब मिलाकर चार प्रकार के कर्म (निष्काम, शुभ, अशुभ और मिश्रित) वेद आदि शास्त्रों में बताए हैं ।

*विशेष सूचना* -- एक ही शुभ कर्म, सकाम भी हो सकता है और निष्काम भी। कैसे?
*उस शुभ कर्म को करते समय मन में जो आपकी भावना होगी, उस भावना से उसका निर्णय होगा, कि आपने जो कर्म किया है, वह निष्काम है, या सकाम है।* 
जैसी की परिभाषा ऊपर लिखी है, यदि वही शुभ कर्म आप मोक्ष प्राप्ति की भावना से करते हैं, जैसे विद्या पढ़ाना , वेद प्रचार करना, दान देना इत्यादि , तो यह शुभकर्म, निष्काम कर्म कहलाएगा ।
    और यदि यही शुभ कर्म विद्या पढ़ाना , वेद प्रचार करना, दान देना इत्यादि, आप सांसारिक सुख प्राप्ति की भावना से करेंगे, तो यही शुभ कर्म, सकाम कर्म बन जाएगा।
कर्म वही रहेगा, केवल भावना बदल जाएगी। भावना बदल जाने से कर्म की कोटि भी बदलेगी , और उसका फल भी बदलेगा। निष्काम कर्म का फल मोक्ष में आनंद मिलेगा। और सकाम कर्म का फल सांसारिक सुख दुख मिलेगा। अर्थात् संसार में जन्म लेकर सुख दुख भोगने होंगे। 
(भावना से कर्म कैसे बदलता है, और उसका फल कैसे बदलता है, इसका एक उदाहरण इस प्रकार से है। 
      एक सैनिक 4 शत्रुओं को मारता है , उसकी भावना अच्छी है , देश की रक्षा करने की है, इसलिए वह *शुभ कर्म* माना जाता है, और इसका उसे प्रशासन की ओर से पुरस्कार भी मिलता है।
       एक आतंकवादी 4 नागरिकों को मार देता है। उसकी भावना बुरी है, वह देश में आतंक फैलाना चाहता है, इसलिए वह *अशुभ कर्म* माना जाता है, और उसे प्रशासन की ओर से दंड भी मिलता है।)

सकाम कर्मों में जो शुभ कर्म हैं, केवल वे ही भावना बदल जाने से निष्काम कर्म के रूप में परिवर्तित हो सकते हैं , अशुभ कर्म और मिश्रित कर्म कभी भी निष्काम नहीं बन सकते। क्योंकि अशुभ कर्म और मिश्रित कर्म का फल तो दुख, या सुख दुख मिला जुला, ही होगा। जैसा कर्म, वैसा फल। अशुभ कर्म और मिश्रित कर्म का फल मोक्ष कभी नहीं होता। क्योंकि मोक्ष तो सदा शुभ कर्मों से ही मिलता है, वह तो शुभ कर्मों का ही फल है। इसलिए केवल सकाम शुभ कर्मों को ही निष्काम कर्म के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

तो सारी चर्चा का सार -- यह हुआ कि हमें सबसे पहले (1) निष्काम कर्म करने का प्रयत्न करना चाहिए, ताकि जल्दी से जल्दी मोक्ष प्राप्त हो जाए। 
(2) यदि इतनी योग्यता न हो, और सकाम कर्म भी करें, तो शुभ कर्म ही करने चाहिएँ। साथ साथ अपनी योग्यता बढ़ाते हुए, थोड़े थोड़े निष्काम कर्म करने का प्रयत्न भी करना चाहिए।
(3) इतनी भी योग्यता न हो, तो और कम योग्यता वाले लोग, मिश्रित कर्म करते हुए अपनी योग्यता को बढ़ाएँ। और धीरे-धीरे वे शुभ कर्म और निष्काम कर्म करने की क्षमता प्राप्त करें, फिर वैसे ही कर्म करें।
(4) अशुभ कर्म तो बिल्कुल नही

ं करने चाहिएँ। क्योंकि वेद आदि शास्त्रों में तो इनके करने का निषेध ही है। यदि फिर भी चोरी डकैती लूटमार धोखा अन्याय रिश्वतखोरी आदि अशुभ कर्म करेंगे, तो पशु पक्षी वृक्षादि योनियों में जाना पड़ेगा और बहुत भयानक दंड या दुख भोगना पड़ेगा।

     ईश्वर आप सबको विद्या बुद्धि शक्ति देवे, कि आप इस कर्म फल व्यवस्था को समझकर अपनी तथा सबकी उन्नति करें। और अपने जीवन को पवित्र बनाते हुए शीघ्र ही अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करें। आप सबका शुभ हितैषी -----

*लेखक -- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, निदेशक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।*

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