वैदिक प्राणयाम
ओ३म्
प्राणायाम जो है दोस्तों इसके बारे में काफी सारी भ्रांतियां भी हैं और कुछ विशेष जानकारियां जो कि आम साधारण मनुष्य को नहीं साधारण मनुष्य तो यही सोचता है कि अनुलोम विलोम, कपालभाति, यही प्राणायाम होता है। जबकि ये हठ योग की क्रियाएं है मेरा मकसद इस लेख के माध्यम से आपको वैदिक प्राणायाम की जानकारी देना ही होगा।
विशेष– बिना यम नियमो के प्राणायाम का फायेदा पूरा नही मिलता. जो भी स्त्री-पुरुष ब्रह्मचर्य के रास्ते में आगे बढ़ना चाहते हैं उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ वैदिक प्राणायाम ही करने चाहिए जिस प्रकार से ऋषि पतंजलि ने पतंजलि योगदर्शन में बताया है। महर्षि मनु जी ने मनुस्मृति में बताया है . ऋषि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में बताया है.
प्राणायाम क्या है Pranayam Kya Hai
सांस लेने (शवास) ओर छोड़ने की गति (प्रश्वाश) को रोकना ही प्राणायाम कहलाता है। श्वास का अर्थ होता है भीतर वायु को ले जाना और प्रश्वास का अर्थ होता है भीतर से वायु को बाहर निकाल देना।
प्राणायाम शब्द दो शब्दों के मेल से योग से बनता है प्राण+आयाम प्राण श्वास और प्रशवास का नाम होता है। और जो यह आयाम शब्द है इसका अर्थ होता है विस्तार करना या फैलाना। इसीलिए प्राणायाम का अर्थ होता है प्राणों को फैलाना श्वास – प्रशवाश का निग्रह करके उनके रोकने की अवधि को बढ़ाना।
प्राणायाम का अदिस्त्रोत वेद है Pranayam Ka Utpatti Sthan Kya Hai
महर्षि दयानंद जी महाराज द्वारा आर्य समाज के बनाए गए नियमों में से जो तीसरा नियम है उसमें ऋषि दयानंद लिखते हैं। “वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है” इसीलिए सभी सत्य विद्याओं के समान ही इस Pranayam विद्या का भी मूल वेद ही है।
और वेद में भी Pranayam के मौलिक सिद्धांतों का स्पष्ट रूप से वर्णन आया है। नीचे जो ऋग्वेद का मंत्र है उसे देखिए।
स्वामी ओमानंद जी इस विषय में वेद मंत्र के विषय से समझाते है
द्वाविमों वातो वात आसिन्धोरा परावत:।
दक्षं ते श्रन्य आवातु परान्यो वातु यद्रप: ॥ ऋ० १०-१३७-२
इस मन्त्र का भाष्य आर्य विद्वान् इस प्रकार करते हैं- (इमौ द्वो) ये दो प्रकार के (वातौ) वायु (वात:) बहते हैं एक वायु (आसिन्धो:) हृदय तक चलता है श्रौर दूसरा (आपरावतः) बाहर के वायुमण्डल तक चलता है। (अन्य:) उनमें एक (ते) तेरे लिए (दक्ष) बल (आवातु) अन्दर बहा लावे और (अन्यः) दूसरा (यद्रपः) जो दोष बुराई है उसे (परावातु) बाहर वहा ले जावे।
हे मन॒ष्य ! तुझ में दो वायु चल रहे हैं। तुझ में श्वास और प्रश्वास के रूप में प्राणा की दो तरह की गति हो रही है। श्वास द्वारा वाहर का शुद्ध वायु तेरे अन्दर के सिन्धु स्यन्दनशील हृदय तक आता है और प्रश्वास द्वारा अन्दर का दूषित वायु बाहर ‘परावत’ तक पहुंचता है । हमारे अन्दर हृदय वह ‘सिन्धु स्थान है
जहां कि सैकड़ों रुधिरवाहिंनी नाड़ी रूप नदियां आकर मिलती हैं. और बाहर ‘परावत’ वह वायुमण्डल नामक स्थान है जोकि वायु का अपार अटूट भण्डार है | एवं ये जो परावत से सिन्धु तक और सिन्धु से परावत तक दो वायु हम में निरन्तर चल रहे हैं
ये ही हमारे जीवन का आधार हैं। क्योंकि इनमें से पहिला वायु श्वास, हमारे सिन्धु में बाहर से प्राण और नवजीवन को लाता है और हमारे रुधिर के एक-एक कण को नवबल संयुक्त कर देता है.
और दूसरा वायु, हमारे रुधिर में से, सारे शरीर में से, सब मल दोष विकार को बहा ले जाता है और बाहर परावत में फेंक देता है एवं हमारा जीवन बढ़ रहा है, इस प्रकार हमारे जीवन की वृद्धि
होती है।
हम नित्य अधिक-अधिक बलवान और नीरोग होते जा रहे हैं। पर हे मनुष्य ! यह द्विविध प्राणक्रिया केवल तेरे भोतिक जीवन का सिद्धान्त नहीं है किन्तु तेरे मानसिक और आत्मिक
जीवन का रहस्य भी इसी में है |
तू जानता नहीं कि सब महामना महापूरुष अपने श्वास द्वारा. केवल शारीरिक शक्ति को नहीं किन्तु उत्साह, धेर्य, बल, सत्य, प्रेम आदि सब मानसिक और आत्मिक संदभावों को अन्दर ले रहे हैं, तथा प्रश्वास द्वारा सब मन्दता, कायरता, अशक्ति, भूठ, घृणा आदी सभी असदभावों को बाहर निकाल रहे है. और इसीलिए वे महान् हुये हैं ।
प्राण के साथ मन ऐसा जुड़ा हुआ है कि तू श्वास के साथ जो सोचेगा वह तुझ में आ बसेगा और जिस प्रश्वास के साथ ध्यान करेगा वह बाहर निकल जावैगा। तनिक अपनी प्रार्थना में तू इस सिद्धान्त का उपयोग करके देख ।
जिसे बसाना चाहता है उसे श्वास के साथ चित्रित करके देख ओर जो अशुभ विचार टलता हीं नहीं है उसे उसके आने पर बार-बार प्रश्वासं के साथ बाहर करके देख तो तुझे निःसंदेह अद्भुत
सफलता मिलेगी। (जिन भाई बहनों के मन के विकार समाप्त नही हो रहे वो इसका प्रयोग जरुर करें )
एवं अपने व्यायाम प्राणायाम और प्रार्थना में तू इस जगत् व्यापक जीवन सिद्धान्त का सदां उपयोग कर । तू देख कि अपनी इस प्राणाक्रिया द्वारा अनन्त शक्ति भण्डारसे जुड़ा हुआ है, और इस भण्डार से अपने प्रत्येक श्वाश द्वारा यथेच्छ बल पा सकता है, और अपने श्वाश द्वारा उस पवित्रक्रारक महापारावार में अपनी तुच्छ मलिनतायें फेंककर सदां पवित्र होता रह सकता है ।
अत: हे मनुप्य ! तू उठ और अब अपने प्रत्येक श्वाश भर प्रश्वास के सांथ नित्य उन्नत और नंवजीवन सम्पन्न होगा । इस प्रकार यह वेद की आज्ञा हैं।
इसी प्रकार दूसरा मन्त्र भी Pranayam के स्वरूप का स्पष्ट चित्रण करता है
आ वात वाहि भेषजं वि वात वांहि यद्रप:।
त्व॑ हि विश्वभेषजों देवानां दूत ईयसे ॥। ऋ० १०, १३७, ३
अर्थात – (वात) हे प्राण ! (भेषजं भ्रावाहि) मुझ में ओषध को वहा लाओ और (वात) हे प्राण ! (यद्रप:) मुझ में जो दोष मल है उसे (वि वाहि) मुझ से बाहर बहा ले जाओ् । (त्वं) तुम
(हि) निश्चय रूप से (विश्वभेषज:) सर्व॑ औषध रूप हो, (देवानां दूत इय्शे) तुम देवताओं के दूत होकर चल रहे हो ।
मन्त्र में प्राण का एक दिव्य देव के रूप में सुन्दर अलंकारिक वर्णन किया है यथा–हे वायु ! हे प्राण ! तुम सर्व॑ ओषधरूप हो, तुम में सबकी सब ओषधियाँ मौजूद हैं, मैं तो यु ही इन बाहिर की नाना प्रकार की ओषध के खाने-पीने के चक्कर में पड़ रहा हूँ ।
यदि मैं, है वात : तुम्हारा ठीक तरह सेवन करू, तुम्हारी शक्ति का उपयोग करू , तो मुझे कभी किसी दवा कि जरूरत न हो।
संसार के 90 प्रतिशत रोगी इसलिए रोगग्रस्त हैं क्योंकि वे ठीक तरह श्वाश, लेना नहीं जानते . तथा सर्वोषधमय तुम्हारा लाभ उठाना नहीं जानते । यदि हम ठीक प्रकार श्वास लेवें तो अन्दर
आता हुआ श्वास ही हमारा दिव्य औषधपान होवे और वाहर जाता हुआ प्रश्वास: हमारे सब रोग-मल निकालने वाला होता रहे
यह जो कहा जाता है कि देवताओं के वैध अ्श्विनीकुमार हैं वे और कोई नहीं हैं, वे नासत्यौ (नाक से पैदा होनेवाल) अ्रश्विनौ ये श्वाश प्रश्वास वा प्राणापान ही हैं जिन्हें इड़ा,पिंगला , चन्द्रप्राण,
सूर्यप्राण आदि अन्य रूपों में भी देखा जाता है।
इस प्राणापान के निय्रमन द्वारा संसार के सब रोगों की दिव्य और अमोघ चिकित्सा हो जाती है । मैं यू ही बाहर के वेद्यों को खोजता फिरता हूँ | जब कि वास्तविक दिव्य वंद्य मेरे अन्दर ही बैठे हुवे हैं।
सब ओषध मेरे अन्दर विद्यमान हैं, में इन्हें बाहर कहां ढूढता हूँ ? और हे प्राणो ! तुम तो देवदूत हो, हमारे अन्दर देवदूत होकर चल रहे हो, हमारे अन्दर सब देशों के ,सन्देशों को लाकर सुनाते हो सदा चल रहे हो |
हम प्राणोपासना से रहित, स्थूलरत लोग बेशक तुम्हारे इन सूक्ष्म देव-संदेशों को न सुनते हों इसीलिए तुम्हारी दिव्य चिकित्सा से वंचित रहते हों, परन्तु जो तुम्हारे. उपासक हैं वे तो अपने प्राण में सुक्ष्म रूप से चलने वाले सब प्रथ्वी, अप तेज आदी देवों के सन्देशों को सुनते हैं। शरीर की सब हरकतों व चेष्टाओं के प्रेरक और नियामक वात ! है प्राण! शरीर में दोष उत्पन्न होते ही तुम हम में दिव्य प्रेरणायें करते हो,
शरीर को विशेष प्रकार से हिलाने-डुलाने वा चेष्टा करने की प्रेरणा तथा विशेष प्रकार के भोजन, पान, आच्छादन की प्रेरणा पेदा करते हो, यदि हम उन्हें सुना करें और उनके अनुसार – आचरण कर लिया करें तो हमारे सब रोगों की चिकित्सा हो जाया करे या बहुत अवस्थाओं में तो हम रोग के उत्पन्त होने से ही बच जाया करें.
पर हम उन्हें सुनते नहीं हैं। दूसरी तरफ जो सुननेवाले हैं वे अपनी नासिकाओं में चलनेवाले तम्हारे स्वरों को भी सुनते हैं, बल्कि उन्हें आधिदेविक संसार के स्वरों से मिलाये रखते हैं इसीलिए उनका जीवन ऐसा संगीतमय हो जांता है कि वे सदा स्वस्थ एवं नीरोग रहते हैं.
हे प्राण ! हम चाहे तुम दिव्यदूत के सन्देशों को सुनें या न सुनें, पर यह सच है कि तुम हमारे आये हुवे दिव्य चिकित्सक हो । तुम सर्वोषध रूप हो । हे हमारे स्वास्थ्य के लिये सम्पूर्ण देवों के दूत होकर हम में चलनेवाले प्राण ! तुम सचमुच सर्वोषध रूप हो.
इस प्रकार वेद में Pranayam के महत्त्व का वर्णन है। शारीरिक मानसिक सभी विकारों को दूर करके उनमें शक्ति का संचार करना Pranayam का मुख्य कार्य है। जीवन पूर्णत: श्वास क्रियां पर ही अवलम्बित है।
Pranayam के द्वारा देह में संजीवन शक्ति का संचार हो जाता है। मन की प्रसुप्त शक्तियां जाग उठती हैं, शरीर शुद्ध, पवित्र, बलवान, तेजस्वी तथा कान्तिमान् बन जाता है, शरीर की सब मांस पेशियां सम्पुष्ट हो जाती हैं,
शरीर में परिभ्रमण करनेवाला रक्त शुद्ध एवं विकाररहित हो जाता है। इस प्रकार Pranayam सब धातुओं के मलों को दूर करके वीर्य को शुद्ध पवित्र कर ओजरूप में परिणत कर जीवन को सुखमय बनादेता है. इसी कारण प्राणों को वेद में पिता, भ्राता, मित्र आदि के रूप में वर्णित किया गया है
प्राणायाम में सावधानी ओर नियम
1.प्राणायाम पेट खाली होने पर ही करना चाहिए पेट में भोजन ओर मल ना हो (सुबह 4 बजे का समय सबसे अच्छा है प्राणायाम के लिए)।
2. जिस दिन पेट साफ ना हो कब्ज हो उस दिन Pranayam नहीं करना चाहिए।
3. भोजन करने के 5 घंटे बाद पेट साफ होने पर ही Pranayam करें।
4. स्नान करने के बाद Pranayam करने से अधिक लाभ मिलता है। क्योंकि आलस खतम हो जाता है ओर रक्त का संचार भली प्रकार चालू हो जाता है।
5. कपड़े ऋतु के अनुसार होने चाहिए ढीले वस्त्र ज्यादा सही रहते है।
6. प्राणायाम का स्थान शुद्ध हो एकांत हो ओर जिधर से वायु आ रही हो उधर मुख करना चाहिए।
7. अपने भोजन बल उम्र के अनुसार है प्राणायाम करें।
8.कम से कम ३ प्राणायाम तो सभी अवस्था वाले स्त्री पुरुष कर सकते है
9. २१ प्राणायाम से अधिक प्राणायाम कभी नहीं करना चाहिए।
10. प्राणायाम की अधिक संख्या महत्व नहीं रखती
11. यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक कमजोर है, रोगी है, बुखार है , ऐसी अवस्था में कुंभक वाले प्राणायाम नहीं करे (सिर्फ लंबे गहरे सांस लेने ओर छोड़ने की क्रिया कर सकते है)
12. सर्दियों में अधिक, गरमियों में कम, वर्ष ऋतु में मध्यम प्राणायाम करने चाहिए।
13. मास,दारू,किसी भी प्रकार का नशा, तेज मिर्च मसाले, बासी चीजे, कोई भी कोलड्रिंक, चाए, इनका सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए
14. किसी अच्छे प्रशिक्षक से सीख कर ही प्राणायाम करना चाहिए।
15. एक बार प्राणायाम करके लगातार दूसरी और तीसरी बार प्राणायाम करना नए व्यक्तियों के लिए कठिन है इसी लिए एक बार प्राणायाम करके 4,5 लंबे सांस लेलें । फिर अग्ला प्राणायाम करे
16. प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य मन की चंचलता को रोक कर आत्मा वा परमात्मा में लगाना है उनका साक्षात्कार करना है। ऐसा विचार मन में रख कर प्राणायाम करें।
17. प्राणायाम के काल में ईश्वर का ध्यान जाप करते रहें।
18. शरीर में मल भरा हो कब्ज के कारण पेट साफ़ न हुआ हो तो प्राणायाम कभी भी नहीं करना चाहिए.
19. कोई बीमार है तो उसे Pranayam नही करने चाहिए (बाकी और कोई सवाल हो तो कमेन्ट में पूछ लेना )
वैदिक प्राणायाम कितने प्रकार के होते है
वैदिक प्राणायाम 4 पारकर के होते है
1.बाह्य प्राणायाम Bahya Pranayam
2.आभ्यन्तर प्राणायाम Abhyantar Pranayam
3.स्तम्भवृत्ति प्राणायाम stambh vritti pranayama
4.बाह्माभ्यांतर विषयाक्षेपी प्राणायाम bahya abhyantar vishyakshepi pranayam
बाह्य प्राणायाम कैसे करते हैं Bahya Pranayam Kaise Kare
किसी एक आसन सिद्धासन, पद्मासन, स्वास्तिक आसन, या सामान्य पालथी में बैठ जाएं। कमर, छाती, गर्दन वा सीर को सीधी रेखा में रखें दोनों हाथों को घुटनों के ऊपर रखें । अब सांस को नाक से भीतर भर ले और गुदा के भाग को खींच लो साथ में मूत्र इन्द्रिये भी ऊपर की तरफ खिंच जाएगी इसे मूल बंध लगाना बोलते है।
फिर एक झटके से (अपनी शक्ति अनुसार) पूरी सांस को बाहर की तरफ निकाल दें ध्यान रहे एक ही बार में पूरी सांस बाहर निकाल देनी है, झटके दे देकर सांस को नहीं निकालना है एक ही बार में पूरी सांस बाहर निकाल देनी है। अब जितनी देर सांसो को बाहर रोक सको उतनी देर रोको, अब इसी अवस्था में ओ३म् या गायत्री मंत्र जा जाप करते रहो मन ही मन.
जब सांस लेने की इच्छा हो तो सांस ले लो और गुदा के भाग को ढीला छोड़ दो। जब सांस भीतर आजाए तो अब ये हुआ आपका एक प्राणायाम अब 3 या 4 सामन्य सांस लो फिर दुबारा इसी प्राणायाम को करो ।
एसे शुरुवात में 3 प्राणायाम ही करने चाहिए
बाह्य प्राणायाम के लाभ क्या है Bahya Pranayam Benefits In Hindi
यदि कोई व्यक्ति इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करता है तो ऐसा करने से वह व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बन जाता है और ब्रह्मचर्य के दिव्य आनंद का अनुभव करता है इस प्राणायाम से शरीर तथा नाड़ियों की शुद्धि हो जाती है आपके शरीर के और इंद्रियों के सभी प्रकार के विकार नष्ट हो जाएंगे आपके अंदर एक तेजस्विता आती है यह ब्रह्मचारियों के लिए काफी अमूल्य प्राणायाम है
अभ्यंतर प्राणायाम कैसे करें Abhyantar Pranayam Kaise Kare
इस प्राणायाम को करने के लिए पहले वाले प्राणायाम की तरह ही किसी भी आसन का आप चुनाव कर सकते हैं।
सबसे पहले आप अपने भीतर की वायु को बाहर निकाल दीजिए अब आप धीरे धीरे धीरे धीरे एक ही बारी में पूरा श्वास भीतर भर लीजिए अब इसे यथाशक्ति भीतर ही रोके रखिए जितनी देर आप आसानी से रोक सके उतनी देर ही रोके रखें जब इच्छा हो छोड़ने की तो धीरे धीरे पूरा श्वाश बाहर छोड़ दें। अब आपका ये एक प्राणायाम हुआ इसी प्रकार शुरू में 5 प्राणायाम कीजिए
अभ्यंतर प्राणायाम के लाभ Abhyantar Pranayam Benefits In Hindi
अभ्यंतर प्राणायाम को करने से आपका शारीरिक बल बढ़ता है आपका शरीर मजबूत बन जाता है आपके फेफड़े बलशाली बनते हैं छाती चौड़ी बनती है मजबूत बनती है मौसम की मार झेलने की क्षमता बढ़ जाती है प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है सभी प्रकार के जो धातु के रोग होते हैं वह भी खत्म हो जाते हैं. अभ्यंतर प्राणायाम से भीतर सांसो को रोकने की शमता बढ़ती है। जिसके कारण कुंभक के व्यायाम आसानी से होते है।
स्तम्भवृत्ति प्राणायाम कैसे करते हैं Stambh Vritti Pranayam Kaise Kare
Stambh Vritti स्तम्भवृत्ति प्राणायाम की विधि यह है जब आपका प्राण अंदर आता हो या बाहर जाता हो या फिर अंदर आ चुका हो या फिर बाहर जा चुका हो उसको जहां का तहां रोक देना चाहिए इसको बोलते हैं स्तंभ भर्ती प्राणायाम।
स्तम्भवृत्ति प्राणायाम के लाभ Stambh Vritti Pranayam Benefits In Hindi
इस प्रणाम को करने से श्वास और प्र्श्वाश दोनों का ही निरोध हो जाता है बाकी लाभ तो वही है जो दूसरे प्रनायामो के हैं
बाह्माभ्यांतर विषयाक्षेपी प्राणायाम कैसे करते हैं bahya abhyantar vishyakshepi Pranayam Kaise Kare
जो बाहर देश में रोका जाता है और जो आभ्यंतर शरीर के अंदर रोका जाता है उन दोनोंप्रनायामो का अतिक्रमण करता है वह बाह्माभ्यांतर विषयाक्षेपी प्राणायाम है । इस प्राणायाम के करने की विधि यह है कि.
प्रथम प्राण को बाहर निकाल देवें और बाहर ही रोके रखें जब अंदर लेने की इच्छा हो तो उसको अंदर न आने दिया जाए जो अंदर प्राण है उसमें से और बाहर निकाल दिया जाए इस प्रकार एक बार दो बार जितनी भी शक्ति हो उतनी बार निकालना चाहिए पुन: प्राण को धैर्य से अंदर ले लिया जाए और अंदर ही रोक दिया जाए।
जब प्राण बाहर की ओर जाने लगे उद्वेग उत्पन्न करे तो उसको बाहर ना जाने दिया जाए किंतु बाहर से और प्राण को अंदर लेने का प्रयास करें इस प्रकार से एक बार या दो बार जितनी भी शक्ति हो उतनी बार बाहर से प्राण को लेवे परंतु जबरदस्ती कभी नहीं करें । जब घबराहट हो तो प्राण को छोड़ दें। यह एक प्राणायाम हुआ ।
चेतावनी – पहले साल बाह्य प्राणायाम का ही अभ्यास करें फिर दुसरे साल आभ्यन्तर प्राणायाम का अभ्यास करें फिर तीसरे साल स्तम्भवृत्ति प्राणायाम का अभ्यास करें जब इस प्राणायाम को करते 2 साल हो जाएँ फिर ये चोथे बाह्माभ्यांतर विषयाक्षेपी प्राणायाम का अभ्यास करें.
यदि आपने प्राणायाम गलत किया या जल्दबाजी की तो व्येक्ती को मूर्छा आने लगती है बुद्धि और शरीर दोनों खराब हो जाते हैं इसलिए बुद्धि पूर्वक यथाशक्ति प्राणायाम करना चाहिए। (कोई बात समझ में ना आये तो कमेन्ट में जरुर पूछ लेना)
प्राणायाम से बुद्धि का विकास Pranayam Se Dimag Tej Kaise Kare
स्वामी ओमानंद जी इस विषय में लिखते है की प्राणायाम का कार्य जहां शरीर की शक्ति बढ़ाना है वहां मलों का नाश करना भी इसका मुख्य कार्य है। मनुष्य की बुद्धि त्रिगुणात्मक होती है। तमोगुण के प्रभाव से बुंद्धि में जड़ता मलिनता -प्रमाद आलस्य बाहुल्य रहता हैं ।
स्देव निष्कर्मण्यता का साम्राज्य मन पर बना रहता है । इसी प्रकार जब बुद्धि पर रजोगुण का प्रभाव होता है तब मन में चंचलता रांग द्वेष ईर्ष्या आदि की अधिकता रहती है सांसारिक एश्वर्य
इन्द्रियों के विषये में आसक्ति तथा आडम्बर प्रधान जीवन रहता है । प्राणायांम करने से बुद्धि के तमोगुण आदि मल दूर होकर सत्वगुण की प्रधानता हो जांती हैं।
योगदर्शनं में मह॒षि पतञ्जलि
“ततः क्षीयते प्रकाशावरणम” योग० २-५२ ।
paranayam के करने से हमारे मन पर प्रकाश का आवरण स्वरूप जो मल है वह क्षीण हो जाता है । जिसके कारण हमारी अविद्या-अज्ञान दुर्बलता श्रादि सब मानसिक कमजोरी दूर होकर मन, आत्मा सब शक्तियों के भण्डार बन जाते हैं
प्राणायाम से मन की एकागार्ता
paranayam करने से मन की एकाग्रता काफी बढ़ जाती है शरीर में प्राणवायु अधिक मात्र में भर जाता है नस नाड़ियों के मल नष्ट हो जाते है बुद्धि स्थिर हो जाती है मन में विचारो का आना खतम हो जाता है जिसके कारण आपकी एकाग्रता काफी अधिक बढ़ जाती है.
- वेद गुरु
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