कर्मफल के नियम ----
(भाग 1. पुनर्जन्म)
(मुख्य आधार -- सत्यार्थप्रकाश का 9वाँ समुल्लास आदि वैदिक शास्त्र)
आत्मा की सत्ता हम पिछले लेखों में प्रमाण और तर्क से सिद्ध कर चुके हैं।
आत्मा एक नित्य वस्तु है। चेतन पदार्थ है। वह कर्म करने में स्वतंत्र है। फल भोगने में ईश्वर की व्यवस्था के आधीन है। आत्मा जैसे भी अच्छे या बुरे कर्म करती है, ईश्वर भी वैसे ही उसके कर्मो का अच्छा या बुरा फल आत्मा को देता है। कुछ कर्मों का फल इस जन्म में ईश्वर दे देता है, और कुछ कर्मों का फल ईश्वर अगले जन्म में देता है। तो अगले जन्म में किस प्रकार से कर्मों का फल मिलता है। इस विषय में यह छोटा सा लेख प्रस्तुत किया जाता है।
पहला नियम - यदि कोई मनुष्य पूरे जीवन में 50% अच्छे काम करें और 50% बुरे काम करे, तो उसको अगला जन्म साधारण मनुष्य का मिल जाएगा, मतलब फोर्थ क्लास फैमिली = मजदूर चपरासी आदि के घर उसे जन्म मिलेगा।
दूसरा नियम - यदि कोई व्यक्ति अच्छे कर्म 50% से अधिक करे और पाप काम करे, तो उसे अच्छे विद्वान धनवान बुद्धिमान (गुण कर्म योग्यता से वैश्य क्षत्रिय या ब्राह्मण परिवार, जन्म से नहीं) ऐसे मनुष्यों के घर में जन्म मिलेगा ।
तीसरा नियम - यदि कोई व्यक्ति बुरे कर्म 50% से अधिक करे और अच्छे कर्म कम करे, तो अगला जन्म उसे कुत्ता बिल्ली सांप बिच्छू मक्खी मच्छर कौआ कबूतर आदि पशु पक्षियों में मिलेगा । और जब उन योनियों में अधिक पाप का दंड भोग लेगा, तब पाप पुण्य बराबर होने पर फिर पहला नियम लागू होगा और वहां से लौट कर फिर वापस सामान्य मनुष्य परिवार में जन्म लेगा।
उदाहरण के लिए एक व्यक्ति ने 60% पाप किए, और पुण्य किए 40%. तो 20% पाप अधिक हुए । इन 20% पापों का दंड भोगने के लिए ईश्वर उसे कुत्ता बिल्ली सांप बिच्छू आदि योनियों में भेज देगा. वहाँ 20% पापों का दंड भोगकर, जब उसके पाप पुण्य 40, 40% बराबर हो जाएंगे , तब ईश्वर उसे लौटाकर फिर साधारण मनुष्य परिवार में जन्म देगा। यह सारी व्यवस्था ईश्वर करता है । उसी के आधीन है । और वही जानता है कि कब किसको कहां कैसा तथा कौन सा जन्म देना है।.
प्रश्न -- इस समय मनुष्यों की संख्या बढ़ती जा रही है. 50 वर्ष पहले इतनी नहीं थी। क्या पिछले 50 वर्षों में पुण्य की संख्या अधिक हुई है, जिसके कारण मनुष्यों की संख्या बढ़ी है?
उत्तर -- जी नहीं। इन पिछले 50 वर्षों में पुण्य बढ़ा हो, ऐसा तो नहीं दिखाई देता। बल्कि पाप ही बढ़ा दिखता है। इस हिसाब से तो मनुष्यों की संख्या कम होनी चाहिए थी। परंतु फिर भी पिछले 50 वर्षों में मनुष्यों की संख्या कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी है।
इसके दो कारण हैं।
एक -- इस समय मनुष्यों की मृत्यु दर कम है। क्योंकि पिछले 50 वर्षों में मेडिकल साइंस ने बहुत प्रगति कर ली है। और बहुत से लोगों को रोगी होने से बचा लिया। हैजा चेचक आदि रोग अब फैलते नहीं। पहले इन रोगों से लाखों लोग मरते थे। अब वे मरते नहीं।
और कैंसर, किडनी आदि के रोगियों को डॉक्टर लोग जल्दी मरने नहीं देते। बाईपास सर्जरी, डायालिसिस आदि उपाय करके लंबे समय तक उनको जीवित रखते हैं ।
इन कारणों से मृत्यु दर कम हो गई ।
और दूसरा कारण -- जन्म दर तो अधिक है ही। इस कारण से मनुष्य मरते कम हैं । पैदा अधिक होते हैं । इसलिए मनुष्यों की संख्या बढ़ती जा रही है। अर्थात पशु पक्षी कीड़े मकोड़े से मनुष्य शरीर में वापस लौटने वालों की संख्या अधिक है।
इसलिए सार यह हुआ कि, मनुष्यों की मृत्यु दर कम, तथा जन्म दर अधिक है , जिसके कारण संख्या बढ़ती जा रही है ।
प्रश्न -- यह कैसे पता चलता है कि जो मनुष्यों की संख्या बढ़ रही है, वे आत्माएँ, पशु पक्षी कीड़े मकोड़े में से वापस मनुष्य योनि में लौट रही हैं?
उत्तर -- अब सोचना यह चाहिए, कि यदि पुण्य अधिक होने के कारण से मनुष्यों की संख्या बढ़ती, तो ऊपर बताए नियम 2 के अनुसार ऊंचे विद्वान धनवान बलवान बुद्धिमान परिवारों में मनुष्यों की संख्या बढ़ती।
परंतु आप देख रहे हैं, ऐसे विद्वान धनवान बलवान परिवारों में तो मनुष्यों की संख्या कम हो रही है। इसका अर्थ यही हुआ कि संसार में इस समय पुण्य की मात्रा कम हुई है।
और सामान्य परिवारों में, मजदूर चपरासी आदि स्तर के परिवारों में ही संख्या बढ़ रही है। तो इसका अर्थ यह हुआ कि कीड़े मकोड़े पशु पक्षियों से ही वापस लौट रहे हैं। क्योंकि ऊपर नियम 3 के अंत में बताया है कि पशु पक्षियों में अधिक पाप का दंड भोग लेने के पश्चात्, जब पाप पुण्य की मात्रा समान हो जाएगी, तब लौट कर वे सामान्य मनुष्य परिवारों में जन्म धारण करेंगे।
तो अब जो मनुष्यों की संख्या बढ़ रही है, वह सामान्य मनुष्य के परिवारों में ही बढ़ रही है? या ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य परिवार में? आप कहेंगे, सामान्य परिवार में। तो इससे स्पष्ट है कि कीड़े मकोड़े पशु पक्षियों से ही अधिक आत्माएँ मनुष्य योनि में वापस लौट रही हैं, इसलिए मनुष्यों की संख्या बढ ़ रही है।
यदि आपने इस जन्म को भी सुख में बनाना चाहते हूं और अगला जन्म भी मन स्लो में कुछ परिवार में धारण करना चाहते हो तो सारे लेख का सारी है कि अधिक से अधिक पूर्ण कर्म करें और पापों से बचें।
*स्मरण रहे -- ईश्वर पूर्ण न्यायकारी है, किसी कर्म का फल माफ नहीं करेगा, चाहे अच्छा कर्म हो, या बुरा।*
*(शेष चर्चा, अगले भाग में।)*
*लेखक -- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, निदेशक, दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।*
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