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हवन की विधि

हवन की विधि

ओ३म्

जो आर्य प्रतिदिन यज्ञ करते है, उनके लिए महर्षि ने संस्कारविधि में दैनिक अग्निहोत्र विधि इस प्रकार लिखी है

आचमन मंत्र

ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये ।
शंयोरभिस्त्रवन्तु न: ।।



अग्न्याधान-मन्त्र
 

ओं भूर्भुव: स्वः ।।

इस मंत्र का उच्चारण करके ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य के घर से अग्नि ला अथवा घृत का दीपक जला, उससे कपूर में लगा, कसी एक पात्र में धर, उसमें छोटी-छोटी लकड़ी लगा के यजमान या पुरोहित उस पात्र को हाथों में उठा, यदि ग्राम हो तो चिमटे से पकड़कर, अगले मंत्र से आधान करे। वह मंत्र यह है (सं० वि० सामान्यप्रकरण)

ओं भूर्भुवः स्वर्धौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा ।

तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाधायादधे ।।

इस मंत्र में दो उपमालडकार हैं। हे मनुष्य लोगों ! तुम ईश्वर से तीन लोकों के उपकार करने वा आपनी व्याप्ति से सूर्य प्रकाश के समान, तथा उत्तम गुणों से पृथ्वी के समान अपने-अपने लोकों में निकट रहनेवाले रचे हुए अग्नि को कार्य की सिद्धि के लिए यत्न के साथ उपयोग करो ।

ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च ।

आस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।

इस मंत्र से जब अग्नि समिधाओं में प्रविष्ट होने लगे तब चन्दन की अथवा आम, पलाश आदि की तीन लकड़ी आठ-आठ अंगुल की घृत में डूबो उनमें से नीचे लिखे एक-एक मंत्र से एक-एक समिधा को अग्नि में चढ़ावें। वे मंत्र ये हैं –


आचमन-मंत्र

इस मंत्र से एक समिधा अग्नि में चढ़ाएं ।

ओम् अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा ।

इदमग्नये जातवेदसे-इदन्न मम ।

इससे और अगले अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा अग्नि में चढ़ावें ।

ओं समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् ।

आस्मिन् हव्या जुहोतन, स्वाहा ।।

पूर्वोक्त मंत्र से तथा इस मंत्र से अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे स्वाहा ।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।।

इस मंत्र से तीसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं तं त्वां समिदि्भरड़ि्गरो घृतेन वर्द्धयामसि ।

बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा ।। इदमग्नयेऽड़ि्रसे-इदन्न मम ।।


जलप्रोक्षण-मन्त्र

ओम् आदितेऽनुमन्यस्व । इससे पूर्व दिशा में

ओम् अनुमतेऽनुमन्यस्व । इससे पश्चिम दिशा मे

ओं सरस्त्वयनुमन्यस्व । इससे उत्तर दिशा मेन जल छिड़कावे ।

तत्पश्चात अंजलि में जल लेके वेदी के पूर्व दिशा आदि चारों ओर छिड़कावें । इसके मंत्र है :-

ओं देव सवित: प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञोपतिं भगाय ।

दिव्यो गन्धर्व: केतपू: केतं न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न: स्वदतु ।।



आघारावाज्यभागाहुति

इस मन्त्र से वेदी के उत्तर भाग में ,

ओम् अग्नये स्वाहा ।। इदमग्नये-इदं न मम ।।

विधि: यज्ञकुंड के उत्तर भाग में एक आहुति और दक्षिण भाग में एक दूसरी आहुति देनी होती है उनको ‘आघारावाज्याहुती’ कहते है । और जो कुंड के मध्य में आहुतियां दी जाती हैं उनको ‘आज्याभागाहुती’ कहते हैं सो घृतपात्र में से स्रुवा भर, अंगूठा, मध्यमा, अनामिका से स्रुवा को पकड़ के इस मंत्र से वेदी के दक्षिण भाग में प्रज्वलित समिधा पर आहुति देवे।

इन दो मंत्रो से वेदी के मध्य में दो आहुति देवे ।

ओं प्रजापतये स्वाहा ।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।

ओं इन्द्राय स्वाहा ।। इदमिन्द्राय-इदं न मम ।।

नीचे लिखे हुए मन्त्रोन से प्रात: काल अग्निहोत्र करे

 

प्रात:काल होम करने के मन्त्र


ओं सूर्यो ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा ।।१।।

ओं सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

ओं ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूदेर्वेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या ।

जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।

अब नीचे लिखे हुए मन्त्र सायंकाल के अग्निहोत्र के जानो ।



सायंकाल होम करने के मन्त्र

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।१।।

ओं अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

इस मन्त्र से तिसरी आहुति मौन करके करनी चाहिये ।हवन की विधि

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा ।।४।।

अब निम्नलिखित मन्त्रो से प्रात: सायं आहुति देनी चाहिये –


प्रात: सायं होम करने के मन्त्र

ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा । इदमग्नये प्राणाय-इदं न मम ।१।

ओं भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा । इदं वायवेऽपानाय-इदं न मम ।२।

ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा । इदमादित्याय व्यानाय-इदं न मम ।३।

ओं भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा ।।

इदमग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य:- इदं न मम ।।४।।

ओं आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरों स्वाहा ।।५।।

ओं या मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते ।हवन की विधि

तया मामद्य मेद्याऽग्ने मेधाविंन कुरु स्वाहा ।।६।।

ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं तन्न आ सुव स्वाहा ।।७।।

ओं अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।

युयोध्यसंज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम स्वाहा ।।८।।

इस मन्त्र से तीन पूर्णाहुति अर्थात एक-एक बार पढके एक-एक करके तीन आहुति देवे ।


पूर्णाहुति मन्त्र

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।

स्थालीपाक की आहुति 


पूर्णिमा के दिन

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं अग्निषोमाभ्यां स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।


अमावस्या के दिन 

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं इन्द्राग्नीभ्यां स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।

यज्ञ को बढाया जा सकता है । आप यज्ञ को बढाने के लिए गायत्री मंत्र, विश्वानि देव मंत्र, ईश्वरस्तुति प्रार्थना, महामृत्युंजय मंत्र आदि के मंत्रो द्वारा यज्ञ को बढ़ाया जा सकता है ।


- वेद गुरु

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