ओ३म्
ये ब्राह्मी लिपि का ओम् है जिसको ज्यादातर लोग स्वस्तिक बोलते है।
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Harrapa से ये मिला था।
ब्राह्मी लिपि से ज्यादा पुरानी सिंधु लिपि है।
सिंधु लिपि से ज्यादा पुरानी और भी लीपिया है, लेकिन ब्राह्मी में भी ऐसा ॐ नहीं था।
समझो अलग अलग काल में ओ३म् कैसे बदला।
बाद में संस्कृत में तोड़ मोड़ होके अलग अलग भाषा में ओ३म् कैसे बदला देखो।
ब्राह्मी में O और M मिला के कैसे लिखते है, देखो।
卍 卍
ब्राह्मी के किसी भी Alphabet में आपको अ या आ नहीं मिलेगा।
इसमें अलग अलग काल के स्वस्तिक मतलब ओ३म् देखो।
ये सबसे पुराना मोहनजोदड़ो में मिला था।
पता है जब ब्राह्मी लिपि में वेद लिखे जाते थे तब चारो वेद सिर्फ 6 ताड़ के पत्तों में निपट जाते थे।
आज के देवनागरी वाला हाल नहीं था, किताबे भर भर के लिखे जाओ
ब्राह्मी लिपि से भी पहले सिंधु लिपि में तो और भी छोटे होंगे।
श्री कृष्ण और उस समय के लोगो में दिमाग था उनका एक शब्द आज के एक पन्ने भर के लिखने का होता था।
श्री राम के समय में कोई और लिपि थी।
शिव जी और ब्राह्मी जी, महर्षि मनु के समय में कोई और लिपि थी।
बस ये समझ लो कि आज के लोगो की बुद्धि का स्तर उन लोगो के सामने कुछ नहीं है।
ये kharoshti लिपि है। जिसको Gandhari लिपि भी कहते है।
महाभारत के समय के gandhar राज्य की
गांधार नरेश शकुनि याद आ गया होगा।
चाहे kharoshti लिपि
सिंधु लिपि
ब्राह्मी लिपि
गुप्त लिपि
नागरी लिपि
देवनागरी लिपि
या और भी हजारों लिपिया हो
Sanskrit सबसे पुरानी भाषा अलग अलग लिपियों में लिखी जाती रही है।
हमे तो ये कभी भी पता नहीं चल पाएगा कि राम, शिव जी आदि के समय में कौनसी लिपि थी।
लेकिन याद रखना सबसे बड़ी बात तो ये है कि ब्राह्मी लिपि के समय 'आ' या 'अ' ऐसे कोई देवनागरी के alphabet नहीं थे।
महर्षि यास्काचार्य निरूत्क में लिखते हैं—
स्वस्ति — इत्यविनाशिनाम।
अस्तिरभिपूजितः स्वस्तीति।
— निरूक्त ३.२०
स्वस्ति यह अविनाशी का नाम है । जगत् में तीन पदार्थ अविनाशी होते हैं — प्रकृति, जीव, ईश्वर। प्रकृति जड होने से जीव का कल्याण स्वयं नहीं कर सकती। जीव स्वयं अपने लिये कल्याण की कामना करनेवाला है, वह कल्याणस्वरूप नहीं है । अप्राप्यपदार्थ अन्य से ही लिया जाता है। अत: परिशष्ट न्याय से साक्षात् कल्याण करनेवाला और स्वंय कल्याणस्वरूप् ईश्वर ही सिद्ध होता है, इसलिए स्वस्ति नाम र्हश्वर का=ओम् का ही है। इसीलिए प्राचीन आर्य प्रत्येक शुभकार्य के आरम्भ में स्वस्तिद परमेशवर का स्मरण मौखिक तथा लिखित रूप् में किया करते थे । वही लिखित ओम् स्वस्ति शनैः – शनैः धार्मिक चिह्र के रूप में स्मरण रह गया और लिपि के रूप में विस्म्त होता चला गया। ईश्वर हामारा कल्याण करता है, हमें सुखी करता है, स्वस्थ रखता है, इसी प्रकार के भावों को अभिव्यक्त करने के लिए यह ओम् पद स्वस्तिक चिह्र के रूप में परिवर्तित हो गया । यह ईश्वर के नाम का प्रतीक है।
भारत की प्राचीन कार्षापण मुद्राएं, ढली हुई ताम्र मुद्रा, अयोध्या, अर्जुनायनगण, एरण, काड, यौधेय, कुणिन्दगण, कौशाम्बी, तक्षशिला, मथुरा, उज्जयिनी, अहिच्छत्रा तथा अगरोहा की मुद्रा, प्राचीनमूर्ति, बर्तन, मणके, पूजापात्र (यज्ञकुण्ड), चम्मच, आभूषण और और शस्त्रास्त्र पर भी स्वस्तिक चिह्र बने हुये पाये गये हैं । मौर्य एवं शुंगकालीन प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री पर स्वस्तिक चिह्र बहुलता से देखे गये हैं ।
जापान से प्राप्त एक बुद्धमूर्ति के वक्षः स्थल पर स्वस्तिक चिह्र चित्रित है । वर्तमान में भी भारतीय जनजीवन में इस चिह्र का प्रचलन सर्वत्र दिखाई देता है । घर, मन्दिर, मोटरगाडी आदि अनेक प्रकार के वाहनों पर इस चिह्र को आप प्रतिदिन देखते हैं ।
हिटलर ने भी इसी चिह्र को अपनाया था ।
भारत से बाहर से भी चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत बेबिलोनिया, आस्टिया, चाल्डिया, पर्सिया, फिनीसिया, आर्मीनिया, लिकोनिया, यूनान, मिश्र, साइप्रस, इटली, आयरलैण्ड, जर्मनी, बेल्जियम, अमेरिका, ब्राजील, मैक्सिको, अफ्रीका, वेनेजुएला, असीरिया, मैसोपोटामिया, रूस स्विटजरलैण्ड, फ्रांस, पेरू, कोलम्बिया, आदि देशों के प्राचीन अवशेषों पर स्वस्तिक चिह्र अनेक रूपों में बना मिला है ।
इन सबका स्वस्तिक उल्टा होता था 卐 ࿗ जैसे दाहिने हाथ की ओेर से आरम्भ करके तो असुरदेशों की लिपि लिखी जाती है, जैसे उर्दूभाषा की अरबी, फारसी लिपियाँ आदि।
इस स्वस्तिक ओम् का इतना व्यापक प्रचार हुआ कि शेरशाह सूरी, इसलामशाहसूरी, इबराहिमशाह सूरी तथा एक मुगल शासक ने भी अपनी मुद्राओं पर इस चिह्र को चिह्रित किया था। जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह के समकालीन पाली के शासक हेमराज की मुद्राओं पर भी यह चिह्र पाया जाता है।
आजकल का यह ऊँ (ओम्) भी इन्हीं का परिवर्तित रूप है । इसे कुछ अज्ञानी लोग पौराणिक ओम् कहते हैं तथा ‘ओ३म्’ को आर्यसामाजिक ओम् मानते हैं ।
जैसे अब विभिन्न लिपियों में ओ३म् इस प्रकार लिखते है 👇
यह लिपि का भेद है । सामान्य लोग अभी तक हजार वर्ष पुराने ऊँ (ओम्) को ही लिखते आ रहे हैं, जबकि ओ३म् अथवा ओम् लिखनेवालों ने इसी ऊँ को वर्तमानकालीन प्रचलित लिपि में लिखा हुआ है ।
आप यह दो चलचित्र भी देख सकते हैं 👇
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