आत्मा साकार या निराकार, भाग - 9
ओ३म्
(पूर्वपक्ष - उत्तरपक्ष)
आत्मा को साकार मानने वालों का पक्ष हम *पूर्वपक्ष* के नाम से प्रस्तुत करेंगे। और हमारा पक्ष हम *उत्तरपक्ष* के नाम से प्रस्तुत करेंगे।
यदि आत्मा को साकार मानने वाले लोग ईमानदारी बुद्धिमत्ता और निष्पक्ष भाव से इन बातों पर विचार करेंगे, तो हमें आशा है, उनको भी यह बात ठीक प्रकार से समझ में आ जाएगी, कि *आत्मा साकार नहीं है, बल्कि निराकार ही है।*
पूर्वपक्ष वालों से विनम्रतापूर्वक हमारे ये प्रश्न हैं, वे भी कृपया इन प्रश्नों का उत्तर सभ्यता पूर्वक देवें।
1 - पूर्वपक्ष - *जो स्थूल होते हैं,... वे सर्वथा निराकार नहीं होते किन्तु परमेश्वर से स्थूल और अन्य कार्य से सूक्ष्म आकार रखते हैं।* -सत्यार्थ प्रकाश, अष्टम समुल्लास, पृष्ठ 177.
यहाँ पर स्थूल वस्तु में सूक्ष्म आकार महर्षि दयानंद जी ने स्वीकार किया है। और आत्मा को सत्यार्थ प्रकाश में स्थूल लिखा है। इसलिए आत्मा में आकार है।
उत्तरपक्ष - यहां पर पूर्वपक्षी की चालाकी देखिए। महर्षि दयानंद जी के मूल पाठ को तोड़ मरोड़ दिया। कुछ का कुछ बना दिया। केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए। महर्षि के जो शब्द प्रकृति के संबंध में थे, उन्हें जानबूझकर गायब कर दिया। और तोड़ मरोड़ के पूर्वपक्षी ने महर्षि दयानंद जी के इन शब्दों को जीवात्मा के संबंध में प्रस्तुत कर दिया। आप देखिए उसकी मानसिकता कितनी खराब है? महर्षि के साथ भी अन्याय, और जनता को भी भ्रमित करना। सोचिए यह कितना बड़ा अपराध है?
महर्षि दयानंद जी के सत्यार्थ प्रकाश के मूल शब्द ये हैं।
*और जो स्थूल होता है, वह प्रकृति और परमाणु जगत् का उपादान कारण है। और वे सर्वथा निराकार नहीं, किन्तु परमेश्वर से स्थूल और अन्य कार्य से सूक्ष्म आकार रखते हैं।* -(सत्यार्थ प्रकाश, अष्टम समुल्लास, पृष्ठ 177.)
यहां तो प्रसंग ही प्रकृति का है , आत्मा का तो प्रसंग ही नहीं है । *इस वचन में तो महर्षि दयानंद जी ने प्रकृति को साकार बताया है, जीवात्मा को नहीं । इस प्रमाण को देकर आत्मा को साकार सिद्ध करने का असफल प्रयास करना, तो सिर्फ धोखा देना मात्र है।*
2 - पूर्वपक्ष - सातवें समुल्लास में निराकारिता का आधार सर्वव्यापकता बताया गया है , न कि स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक जी के अनुसार चेतनता।
ईश्वर सर्वव्यापक है इसलिये निराकार है।
सम्पूर्ण सत्यार्थप्रकाश में निराकारिता का आधार चेतनता अथवा अन्य गुण नहीं बताये। किन्तु जो जो वस्तु सर्वव्यापक होगी सिर्फ वही निराकार होगी।
उत्तरपक्ष - यह कहना गलत है कि महर्षि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में निराकार होने का आधार चेतनता को नहीं बताया है। यह ऋषि वचन देखिए।
*क्योंकि जो संयोग से उत्पन्न होता है उसको संयुक्त करने वाला निराकार चेतन अवश्य होना चाहिए।* सत्यार्थप्रकाश सप्तम समुल्लास। पृष्ठ 149.
यदि ईश्वर सर्वव्यापक होने से निराकार है ।
तो महर्षि दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश के नौवें समुल्लास में प्रकृति को भी विभु अर्थात् व्यापक बताया है ।
क्या प्रकृति निराकार है? वह तो साकार है। *इसलिए व्यापक होने से निराकार कहना भी गलत है। जब व्यापक होने से निराकार कहना गलत है, तो एकदेशी होने से साकार कहना भी गलत है। इसलिये आत्मा एकदेशी होने से साकार सिद्ध नहीं होता।*
(महर्षि का अभिप्राय है जितना बड़ा ब्रह्मांड है, उतने पूरे ब्रह्मांड में प्रकृति विभु है अर्थात व्यापक है.)
यहां पर पूर्वपक्षी लोग छल का प्रयोग करते हैं । *प्रकृति को कहते हैं, व्यापक है, सर्वव्यापक नहीं । इसलिये सर्वव्यापक न होने से एकदेशी है। ईश्वर सर्वव्यापक है।* यह छल का प्रयोग है।
*क्या प्रकृति, जीवात्मा के समान एकदेशी है? अर्थात् जितना फैलाव आत्मा का है, क्या उतना ही प्रकृति का है? यदि नहीं । तो ब्रह्मांड की सीमा तक व्यापक प्रकृति को, बहुत छोटे आत्मा के समान एक देशी कहना छल ही तो है।*
और मैं जो कहता हूं कि *आत्मा निराकार है, चेतन होने से।* तो मेरा पंचावयव मैं अपने पूर्व लेख में लिख ही चुका हूँ। फिर से याद दिला देता हूँ, पढ़ लीजिये।
*आत्मा निराकार है। चेतन होने से। जो जो वस्तु चेतन होती है, वह वह निराकार होती है। जैसे ईश्वर। आत्मा भी ईश्वर के समान चेतन है। इसलिए चेतन होने से आत्मा निराकार है।*
मेरे पंचावयव का खंडन तो प्रमाण तर्क से पूर्वपक्षी लोग कर नहीं पाए। और तर्क प्रमाण के बिना, सिर्फ इतना कह देने मात्र से कुछ नहीं होता, कि *चेतन होने से निराकार की सिद्धि नहीं होती।*
दूसरी बात -- क्या आप लोग सिर्फ सत्यार्थ प्रकाश को ही प्रमाण मानते हैं ? पंचावयव को किसी विषय की सिद्धि का साधन नहीं मानते? केवल सत्यार्थ प्रकाश का ही प्रमाण क्यों माँगते हैं? यह भी अन्याय है। जबकि अपने पक्ष की सिद्धि करने के लिए महर्षि गौतम जी और महर्षि दयानंद जी ने अनेक सुविधाएं दे रखी हैं। प्रत्यक्ष आदि 8 प्रमाण , तर्क और पंचावयव। इतने साधनों से कोई भी व्यक्ति अपने पक्ष की सिद्धि कर सकता है। *फिर यह आग्रह करना कि, "सत्यार्थप्रकाश में तो ऐसा कहीं नहीं लिखा," बातचीत करने की अपनी अज्ञानता को प्रकाशित करना है।*
3 - पूर्वपक्ष - *जीवात्मा निराकार नहीं, इसीलिये व्यापक नहीं है।*
उत्तर - यही तो विषय सिद्ध करना था कि जीवात्मा साकार है या निराकार ? और आपके इस कथन में , जो बात सिद्ध नहीं है, उसी को आप हेतु बना रहे हैं , और सिद्धि कर रहे हैं जीवात्मा व्यापक नहीं है, इस बात की। *यह तो हमारी चर्चा का विषय ही नहीं है, कि जीवात्मा एकदेशी है या व्यापक है?* यह विषय से बाहर की बात है। इसलिये आपका कथन अशुद्ध है। *इससे आत्मा साकार सिद्ध नहीं होता।*
इसलिए यह बात इन प्रमाणों एवं तर्क से अच्छी प्रकार से सिद्ध होती है कि *आत्मा साकार नहीं, बल्कि निराकार है.*
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक - दर्शन योग महाविद्यालय
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