*आत्मा साकार है या निराकार, भाग - 8*
ओ३म्
*आत्मा स्थान नहीं घेरती। और रेलगाड़ियों की तरह टकराती भी नहीं।*
1 - *आत्मा स्थान नहीं घेरती।*
साधर्म्य से पंचावयव ---
*आत्मा स्थान नहीं घेरती। चेतन वस्तु होने से। जो जो चेतन वस्तु होती है , वह वह स्थान नहीं घेरती। जैसे ईश्वर। आत्मा भी ईश्वर के तुल्य चेतन है। इसलिए चेतन होने से आत्मा स्थान नहीं घेरती।*
वैधर्म्य से पंचावयव ----
*आत्मा स्थान नहीं घेरती। चेतन वस्तु होने से। जो जो जड़ वस्तु होती है, वह वह स्थान घेरती है। जैसे ईंट पत्थर इत्यादि। आत्मा ईंट पत्थर के समान जड़ वस्तु नहीं है। इसलिए चेतन वस्तु होने से, आत्मा स्थान नहीं घेरती।*
सार यह हुआ कि,
आत्मा चेतन है, ईश्वर भी चेतन है, दोनों चेतन हैं। दोनों में से कोई भी वस्तु स्थान नहीं घेरती। ईंट पत्थर आदि पदार्थ (प्रकृति) जड़ हैं। ये स्थान घेरते हैं। इस कारण से तीनों वस्तुएं एक ही स्थान पर इकट्ठी रह सकती हैं, और रहती हैं।
*यदि आत्मा चेतन होते हुए स्थान घेरेगी, तो ईश्वर भी चेतन होते हुए स्थान घेरेगा।
यदि चेतन ईश्वर स्थान घेरता होता, तो ईश्वर अनन्त होने से, सारा स्थान ईश्वर ही घेर लेता। तब आत्मा और प्रकृति = (भौतिक पदार्थों) को निवास करने का स्थान ही नहीं मिलता। अब बताइए, ईश्वर के अतिरिक्त क्या आत्मा और प्रकृति भी जगत में निवास कर रहे हैं या नहीं?*
यदि हां। अर्थात आत्मा और प्रकृति भी जगत में निवास कर रहे हैं। तो इससे सिद्ध हुआ कि ईश्वर ने कोई स्थान नहीं घेरा । जब चेतन ईश्वर कोई स्थान नहीं घेरता, तो चेतन आत्मा क्यों स्थान घेरेगी? *इसलिए यह मानना गलत है कि आत्मा स्थान घेरती है।*
2 - यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8. "स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं......" इस मंत्र के भाष्य में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने अव्रणम्, इस शब्द की व्याख्या में लिखा है--
*"छिद्र रहित, न ही छेद करने योग्य." अर्थात्
ईश्वर में न कोई छिद्र है, और न कोई छिद्र हो सकता है।*
इस बात को ध्यान में रखते हुए कृपया विचार करें। यदि आत्मा स्थान घेरती है, तो जितना स्थान आत्मा घेरती है, उतने स्थान पर ईश्वर की उपस्थिति होगी या नहीं होगी? उतने स्थान पर ईश्वर की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जैसे एक ईंट (जो कि जड़ एवं भौतिक पदार्थ है,) स्थान घेरती है। जितना स्थान वह एक ईंट घेरती है, उतने स्थान में दूसरी ईंट प्रवेश नहीं कर सकती। क्योंकि पहली ईंट ने वह स्थान घेर लिया है। इसी प्रकार से यदि आत्मा भी स्थान घेरेगी, तो वहां पर ईश्वर को प्रवेश नहीं करने देगी। ऐसी स्थिति में जहां-जहां पर जितनी आत्माएं विद्यमान होंगी, वहां वहां पर ईश्वर उपस्थित नहीं रह पाएगा। उनके चारों ओर ईश्वर विद्यमान रहेगा। ऐसा होने पर ईश्वर में असंख्य छिद्र हो जाएंगे। क्योंकि असंख्य आत्माएं उतना उतना स्थान घेर लेंगी, और वहां ईश्वर को प्रवेश नहीं करने देंगी। ऐसी स्थिति में महर्षि दयानंद जी और वेद से विरोध उत्पन्न होगा।
वेद तो यह कह रहा है कि ईश्वर में कोई भी छिद्र न है, और न हो सकता है। आत्मा को स्थान घेरने वाली मानने पर , ईश्वर में असंख्य छिद्र मानने होंगे। यह दोष आएगा।
पूर्वपक्ष - प्रकृति भी तो स्थान घेरती है। उसमें भी ईश्वर प्रवेश कर जाता है। तो आत्मा द्वारा स्थान घेरने पर आत्मा में ईश्वर प्रवेश क्यों नहीं कर पाएगा?
उत्तरपक्ष - प्रकृति स्थान क्यों घेरती है?
पूर्वपक्ष - क्योंकि वह जड़ पदार्थ है, इसलिए प्रकृति स्थान घेरती है।
उत्तरपक्ष - तो क्या आत्मा भी जड़ है?
पूर्वपक्ष - नहीं ।
उत्तरपक्ष - तो फिर आत्मा क्यों स्थान घेरेगी? आपके ही कथन से आपकी बात विरुद्ध हो रही है। यदि जड़ प्रकृति स्थान घेरती है, तो चेतन आत्मा स्थान नहीं घेरेगी, जैसे चेतन ईश्वर स्थान नहीं घेरता है। *इसलिए यही सिद्ध हुआ कि आत्मा स्थान नहीं घेरती है।*
इस स्थिति में जैसे ईश्वर चेतन है। वह स्थान नहीं घेरता, और वह जड़ प्रकृति में प्रविष्ट हो जाता है। ऐसे ही चेतन ईश्वर, स्थान न घेरने वाली चेतन आत्मा में भी प्रविष्ट हो जाएगा। इस प्रकार से आत्मा में भी ईश्वर का प्रवेश होने से, ईश्वर में छिद्र होने का दोष नहीं आएगा। ईश्वर तथा आत्मा, दोनों व्याप्य व्यापक भाव से एक ही स्थान पर रह भी लेंगे।
*आत्मा रेलगाड़ियों की तरह टकराती भी नहीं।*
साधर्म्य से पंचावयव ---
*दो आत्माएं टकराती नहीं हैं। चेतन होने से। जो जो वस्तु चेतन होती है, वह वह टकराती नहीं है। जैसे आत्मा और ईश्वर। तो जैसे आत्मा और ईश्वर दोनों चेतन हैं, इसी प्रकार से दो आत्माएं भी चेतन हैं। इसलिए चेतन होने से, दो आत्माएं टकराती नहीं हैं।*
वैधर्म्य से पंचावयव ----
*दो आत्माएं टकराती नहीं हैं। चेतन होने से। जो जो वस्तु जड़ होती है, वह वह टकराती है। जैसे 2 रेलगाड़ियां। दो आत्माएं, 2 रेलगाड़ियों की तरह जड़ नहीं हैं। इसलिए चेतन होने से, दो आत्माएं टकराती नहीं हैं।*
यह टक्कर वाली बात भी तभी आती है, जब कोई वस्तु भौतिक हो, जड़ हो, स्थान घेरती हो। भौतिक पदार्थों, जड़ पदार्थों, स्थान घेरने वाली चीजों में टक्कर होती है। जैसे 2 रेलगाड़ियां स्थान घेरती हैं, जड़ हैं, भौतिक हैं, उनमें टक्कर होती है। दो आत्माएं तो चेतन हैं, वे स्थान नहीं घेरती, भौतिक नहीं हैं, जड़ नहीं हैं, इसलिए टकराती भी नहीं।
जो चेतन निराकार वस्तु है, उसमें कोई जड़त्व, भौतिकत्व है ही नहीं, तो टक्कर कैसे होगी? *इसलिए यह मानना भी गलत है, कि दो आत्माओं में टक्कर होती है।*
जैसे आत्मा और ईश्वर चेतन एवं निराकार होने से, स्थान नहीं घेरते, इसलिये दोनों एक दूसरे में रह लेते हैं, कभी टकराते नहीं। ऐसे ही 2 आत्माएँ भी चेतन एवं निराकार होने से, स्थान नहीं घेरती, तथा एक दूसरे में रह सकती हैं। न वे स्थान घेरती हैं , और न ही उन दोनों आत्माओं में कोई टक्कर होती है।
पूर्वपक्ष - कुछ लोग कहते हैं, सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि *मुक्ति के स्थान में बहुत सा भीड़ भड़क्का हो जाएगा, क्योंकि वहां आगम अधिक और व्यय कुछ भी नहीं होने से बढ़ती का पारावार न रहेगा।*
(सत्यार्थप्रकाश 9 वाँ समुल्लास, पृष्ठ 199.)
ऐसा प्रमाण देकर वे यह कहना चाहते हैं कि आत्मा यदि मुक्ति में भीड़ भड़क्का करेंगी, तो इसका अर्थ है कि आत्माएँ स्थान घेरती हैं।
उत्तरपक्ष - यदि आप वहां पूर्वपक्षी एवं उत्तरपक्षी का पूरा प्रसंग देखें तो यह पता चलेगा, पूर्वपक्षी कह रहा है, कि *जितनी आत्माओं का मोक्ष हो जाएगा उतनी आत्माएँ, ईश्वर नई बनाकर संसार में रख देगा। इसलिए संसार कभी भी खाली नहीं होगा, और आत्मा मुक्ति से कभी भी वापस नहीं लौटेगी।*
ऐसा पूर्वपक्ष है।
तो इस पूर्वपक्ष का खंडन करने के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती जी वहां अभ्युपगम सिद्धांत से यह बात कह रहे हैं, कि - *यदि ईश्वर नई आत्माएँ बनाएगा। तो इस पक्ष में, कोई भी वस्तु जब बनाई जाती है, तो किसी न किसी उपादान कारण से बनाई जाती है। वह उपादान कारण जड़ ही होता है, और वह स्थान भी घेरता है। यदि आप ऐसा मानेंगे कि ईश्वर नई आत्माएँ बनाएगा, तो वे जड़ भी होंगी, तथा स्थान भी घेरेंगी। यदि वे स्थान घेरेंगी, तो फिर वे भीड़ भड़क्का भी पैदा करेंगी। और तब तो उनमें टक्कर भी हो सकती है।*
परंतु यह तो अभ्युपगम सिद्धांत के आधार पर पूर्वपक्ष में दोष दिखाया गया है । यह महर्षि दयानंद जी का स्वमत नहीं है। क्योंकि आज जो नित्य निराकार अल्पज्ञ चेतन आत्माएँ विद्यमान हैं। उन आत्माओं को महर्षि दयानंद जी न तो जड़ मानते, न साकार मानते, और न ही स्थान घेरने वाला मानते। उनके पूरे शास्त्रों में ऐसी झलक कहीं भी नहीं मिलती।
आत्मा के जो लक्षण इच्छा द्वेष प्रयत्न ज्ञान आदि महर्षि दयानंद जी ने स्वीकार किए हैं, उनसे यह सिद्ध नहीं होता कि आत्मा जड़ है, साकार है, स्थान घेरती है, या आपस में टकराती है। ये सब इच्छा द्वेष प्रयत्न ज्ञान आदि लक्षण तो चेतन निराकार आत्मा में ही सिद्ध होते हैं। इसलिए उस भीड़ भड़क्के वाली बात से "आत्मा को स्थान घेरने वाली कहना, और टकराने वाली बताना" यह महर्षि दयानंद जी के सिद्धांत के विरुद्ध एवं असंगत है।
जैसे अभ्युपगम सिद्धांत से यह कहा जाता है कि *यदि ईश्वर अवतार लेगा, तो उसे भूख प्यास गर्मी ठंडी रोग वियोग जन्म मृत्यु आदि सब चीजें दुखी करेंगी।* यह तो पूर्व पक्ष में दोष दिखाया गया है, न कि सिद्धांती का अपना मत है, कि ईश्वर इन भूख प्यास रोग वियोग आदि से दुखी होता है।
ऐसी ही बात भीड़ भड़क्के वाली है। वह भी पूर्व पक्ष में दोष दिखाया गया है, न कि सिद्धांती का स्वमत है।
*इसलिए ये दोनों बातें गलत हैं, कि आत्मा स्थान घेरती है , और आत्माओं में टक्कर होती है।*
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक - दर्शन योग महाविद्यालय
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