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16 संस्कार - संक्षिप्त परिचय

ओ३म्

सोलह संस्कारों के नाम और संक्षिप्त परिचय :-
१. गर्भाधानम्
२. पुंसवनम्
३. सीमन्तोन्नयनम्
४. जातकर्मसंस्कारः
५. नामकरणम्
६. निष्क्रमणसंस्कारः
७. अन्नप्राशनसंस्कारः
८. चूडाकर्मसंस्कारः
९. कर्णवेधसंस्कारः
१०. उपनयनसंस्कारः
११. वेदारम्भसंस्कारः
१२. समावर्त्तनसंस्कारः
१३. विवाहसंस्कारः
१४. वानप्रस्थाश्रमसंस्कारः
१५. संन्यासाश्रमसंस्कारः
१६. अन्त्येष्टिकर्मविधिः

★ १. गर्भाधानम् - गर्भाधान उसको कहते हैं कि जो " गर्भस्याऽऽधानं वीर्यस्थापनं स्थिरीकरणं यस्मिन् येन वा कर्मणा , तद् गर्भाधानम् ।" गर्भ का धारण , अर्थात् वीर्य का स्थापन गर्भाशय में स्थिर करना जिससे होता है । उसी को गर्भाधान संस्कार कहते है ।

● २. पुंसवनम् - पुंसवन उसको कहते हैं जो ऋतुदान देकर गर्भस्थिती से दूसरे वा तीसरे महीने में पुंसवन संस्कार किया जाता है ।
अर्थात् गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में जो संस्कार किया जाता है । उसे पुंसवन संस्कार कहते है ।

■ ३. सीमन्तोन्नयनम् - जिससे गर्भिणी स्त्री का मन संतुष्ट आरोग्य गर्भ स्थिर उत्कृष्ट होवे और प्रतिदिन बढ़ता जावे । उसे सीमन्तोन्नयन कहते हैं ।
◆ गर्भमास से चौथे महीने में शुक्लपक्ष में जिस दिन मूल आदि पुरुष नक्षत्रों से युक्त चन्द्रमा हो उसी दिन सीमन्तोन्नयन संस्कार करें और पुंसवन संस्कार के तुल्य छठे आठवें महीने में पूर्वोक्त पक्ष नक्षत्रयुक्त चन्द्रमा के दिन सीमन्तोन्नयन संस्कार करें ।

★ ४. जातकर्मसंस्कारः - संतान के जन्म के तुरंत बाद जो संस्कार किया जाता है । उसे जातकर्म संस्कार कहते हैं ।

★ ५. नामकरणम् - जन्मे हुए बालक का सुन्दर नाम धरे । ( सार्थक नाम रखना )
नामकरण का काल - जिस दिन जन्म हो उस दिन से लेके १० दिन छोड़ ग्यारहवें , वा एक सौ एकवें अथवा
दूसरे वर्ष के आरंभ में जिस दिन जन्म हुआ हो , नाम धरे ।

◆ ६. निष्क्रमणसंस्कारः - निष्क्रमणसंस्कार उसको कहते हैं कि जो बालक को घर से जहाँ का वायुस्थान शुद्ध हो वहाँ भ्रमण कराना होता है । उसका समय जब अच्छा देखें तभी बालक को बाहर घुमावें अथवा चौथे मास में तो अवश्य भ्रमण करावें ।
निष्क्रमण संस्कार के काल के दो भेद हैं - एक बालक के जन्म के पश्चात् तीसरे शुक्लपक्ष की तृतीया , और दूसरा चौथे महीने में जिस तिथि में बालक का जन्म हुआ हो । उस तिथि में यह संस्कार करे ।

★ ७. अन्नप्राशनसंस्कारः - अन्नप्राशन संस्कार तभी करे जब बालक की शक्ति अन्न पचाने योग्य होवे ।
छठे महीने बालक को अन्नप्राशन करावे । जिसको तेजस्वी बालक करना हो , वह घृतयुक्त भात ( चावल ) अथवा दही , शहद और घृत तीनों भात के साथ मिलाके विधि अनुसार संस्कार करें ।

★ ८. चूडाकर्मसंस्कारः ( मुण्डन संस्कार ) - चूडाकर्म को केशछेदन संस्कार भी कहते है । ( सिर को केश व बाल रहित करना ) 
यह चूडाकर्म अथवा मुण्डन बालक के जन्म के तीसरे वर्ष वा एक वर्ष में करना ।उत्तरायणकाल शुक्लपक्ष में जिस दिन आनन्दमङ्गल हो , उस दिन यह संस्कार करे ।

★ ९. कर्णवेधसंस्कारः - बालक के कर्ण वा नासिका का छेदन करना कर्णवेधसंस्कार है ।
बालक के कर्ण वा नासिका के वेध का समय जन्म से तीसरे वा पांचवें वर्ष का उचित है ।

■ १०. उपनयनसंस्कारः ( यज्ञोपवीत , जनेऊ ) -
जिस दिन जन्म हुआ हो अथवा जिस दिन गर्भ रहा हो । उससे आठवें वर्ष में ब्राह्मण के ,जन्म वा गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में क्षत्रिय के और जन्म वा गर्भ से बारहवें वर्ष में वैश्य के बालक का यज्ञोपवीत करें तथा ब्राह्मण के १६ सोलह , क्षत्रिय के २२ बाईस और वैश्य का बालक का २४ चौबीसवें वर्ष से पूर्व - पूर्व यज्ञोपवीत होना चाहिये । यदि पूर्वोक्त काल में यज्ञोपवीत व जनेऊ न हो वे पतित माने जावें ।
● जिसको शीघ्र विद्या , बल और व्यवहार करने की इच्छा हो और बालक भी पढ़ने समर्थ हो तो ब्राह्मण के लड़के का जन्म वा गर्भ से पांचवें , क्षत्रिय के लड़के का जन्म वा गर्भ से छठे और वैश्य के लड़के का जन्म वा गर्भ से आठवें वर्ष में यज्ञोपवीत करें ।

 ★ ११. वेदारम्भसंस्कारः - वेदारम्भ उसको कहते हैं जो गायत्री मन्त्र से लेके साङ्गोपाङ्ग ( अङ्ग - शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छन्द , ज्योतिष । उपाङ्ग - पूर्वमीमांसा , वैशेषिक , न्याय , योग , सांख्य और वेदांत । उपवेद - आयुर्वेद , धनुर्वेद , गान्धर्ववेद और अर्थवेद अर्थात् शिल्पशास्त्र । ब्राह्मण - ऐतरेय , शतपथ , साम और गोपथ । वेद - ऋक् , यजुः , साम और अथर्व इन सबको क्रम से पढ़े । ) चारों वेदों के अध्ययन करने के लिये नियम धारण करना ।
समय - जो दिन उपनयनसंस्कार का है , वही वेदारम्भ का है । यदि उस दिवस में न हो सके , अथवा करने की इच्छा न हो तो दूसरे दिन करे । यदि दूसरा दिन भी अनुकूल न हो तो एक वर्ष के भीतर किसी दिन करे ।

★ १२. समावर्त्तनसंस्कारः - समावर्त्तनसंस्कार उसको कहते हैं जिसमें ब्रह्मचर्यव्रत साङ्गोपाङ्ग वेदविद्या , उत्तमशिक्षा और पदार्थविज्ञान को पूर्ण रीति से प्राप्त होके विवाह विधानपूर्वक गृहाश्रम को ग्रहण करने के लिए घर की ओर आना ।
तीन प्रकार के स्नातक होते है ।
१. विद्यास्नातक - जो केवल विद्या को समाप्त तथा ब्रह्मचर्य व्रत को न समाप्त करके स्नान करता है वह विद्यास्नातक है ।
२. व्रतस्नातक - जो ब्रह्मचर्य व्रत को समाप्त तथा विद्या को न समाप्त करके स्नान करता है वह व्रतस्नातक है ।
३. विद्याव्रतस्नातक - जो विद्या और ब्रह्मचर्य व्रत दोनों को समाप्त करके स्नान करता है वह विद्यव्रतस्नातक कहाता है ।
इस कारण ४८ अड़तालीस वर्ष का ब्रह्मचर्य समाप्त करके ब्रह्मचारी विद्या व्रत स्नान करे ।

 ★ १३. विवाहसंस्कारः - विवाह उसको कहते हैं कि जो पूर्ण ब्रह्मचर्यव्रत से विद्या बल को प्राप्त तथा सब प्रकार से शुभ गुण , कर्म , स्वभावों और अपने - अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने के लिये स्त्री और पुरुष का जो संबंध होता है ।
* उत्तरायण शुक्लपक्ष अच्छे दिन अर्थात् जिस दिन प्रसन्नता हो उस दिन विवाह करना चाहिये ।
* कितने आचार्यों का मत है कि सब काल में विवाह करना चाहिए ।
* जिस अग्नि का स्थापन विवाह में होता है , उस को आवसथ्य नाम है ।
* प्रसन्नता के दिन स्त्री का पाणिग्रहण , जो कि स्त्री सर्वथा शुभ गुणादि से उत्तम हो , करना चाहिए ।
■ विवाह - जब दो प्राणी प्रेमपूर्वक आकर्षित होकर अपने आत्मा , हृदय और शरीर को एक - दूसरे को अर्पित कर देते हैं , तब हम सांसारिक भाषा में उसे विवाह कहते है ।

★ १४. वानप्रस्थाश्रमसंस्कारः - वानप्रस्थसंस्कार उसको कहते हैं , जो विवाह से सन्तानोत्पत्ति करके पूर्ण ब्रह्मचर्य से पुत्र का भी विवाह करे , और पुत्र का भी एक संतान हो जाए । अर्थात् जब पुत्र का भी पुत्र हो जाए तब पुरुष वानप्रस्थाश्रम अर्थात् वन में जाकर वानप्रस्थाश्रम के कर्तव्य का निर्वहन करें।

★ १५.संन्यासाश्रमसंस्कारः - संन्यास संस्कार उसको कहते हैं कि जो मोहादि आवरण पक्षपात छोड़के विरक्त होकर सब पृथिवी में परोपकार्थ विचरे ।

★ १६ . अन्त्येष्टिकर्म - अन्त्येष्टि कर्म उसको कहते हैं कि जो शरीर के अंत का संस्कार है , जिसके आगे शरीर के लिए कोई भी अन्य संस्कार नहीं हैं । इसी को नरमेध , पुरुषमेध , नरयाग , पुरुषयाग भी कहते हैं ।
* भस्मान्त शरीरम् । ( यजुर्वेद ४०.१५ )
इस शरीर का संस्कार ( भस्मान्तम् ) अर्थात् भस्म करने पर्यंत है ।


अधिक जानकारी के लिए ऋषि दयानन्द कृत संस्कार विधि अवश्य पढ़े।


 - वेद गुरु

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